मैं कम बोलता हूं, पर कुछ लोग कहते हैं कि जब मैं बोलता हूं तो बहुत बोलता हूं.
मुझे लगता है कि मैं ज्यादा सोचता हूं मगर उनसे पूछ कर देखिये जिन्हे मैंने बिन सोचे समझे जाने क्या क्या कहा है!
मैं जैसा खुद को देखता हूं, शायद मैं वैसा नहीं हूं.......
कभी कभी थोड़ा सा चालाक और कभी बहुत भोला भी...
कभी थोड़ा क्रूर और कभी थोड़ा भावुक भी....
मैं एक बहुत आम इन्सान हूं जिसके कुछ सपने हैं...कुछ टूटे हैं और बहुत से पूरे भी हुए हैं...पर मैं भी एक आम आदमी की तरह् अपनी ज़िन्दगी से सन्तुष्ट नही हूं...
मुझे लगता है कि मैं नास्तिक भी हूं थोड़ा सा...थोड़ा सा विद्रोही...परम्परायें तोड़ना चाहता हूं ...और कभी कभी थोड़ा डरता भी हूं...
मुझे खुद से बातें करना पसंद है और दीवारों से भी...
बहुत से और लोगों की तरह मुझे भी लगता है कि मैं बहुत अकेला हूं...
मैं बहुत मजबूत हूं और बहुत कमजोर भी...
लोग कहते हैं लड़कों को नहीं रोना चाहिये...पर मैं रोता भी हूं...और मुझे इस पर गर्व है क्योंकि मैं कुछ ज्यादा महसूस करता हूं...

Monday, 17 June 2013

रोजगार जहां जीरो, वहां झूठे विकास का दावा कर बन रहे हीरो


ग्वालियर। मेरी ये टिप्पणी ना तो भाजपा नेताओं पर है, और ना ही कांग्रेस नेताओं पर । सीधा आरोप है, मतादाताओं पर, वो भी मेरे अपने ग्वालियर चंबल के। साफ पहले इसलिए कर दिया कि मेरे इस पोस्ट को राजनीति के आरोप व प्रतयारोप का ठिकाना ना बना दें।
दरअसल कल ही देश के प्रतिष्ठित इंडिया टुडे समूह ने ग्वालियर में उभरता चंबल कॅान्क्लेव का आयोजन किया था। यहां चर्चा करने के लिए भारत सरकार के रुरल डवलपमेंट मिनिस्टर प्रदीप जैन आदित्य व प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान भी उपिस्थत थे। मैने कॅान्क्लेव में इनसे सवाल किया कि जिस अंचल के युवा पैदा होकर पढ़ने तक यही होते है। बाद में रोजगार की तलाश के लिए दिल्ली, नोएडा व पूना जैसे बड़े शहरों की ओर पलायन कर जाते है। एसे हालातों मे उभरते चंबल का दावा करना ठीक होगा। जहां युवा नही, रोजगार वहां विकास की बात करना बेइमानी है। इस पर भारत सरकार के मंत्री प्रदीप जी का कहना था कि विकास हो रहा है। केन्द्र सरकार पर राज्य सरकार कोई प्रस्ताव लाएगी, तब इस पर काम किया जाएगा। वही अगले सत्र में शिवराज सिंह कहते है कि उन्होने साढ़ें सात सालों मे कानून व्यवस्था ठीक की। अब रोजगार के अवसर बढ़ाने पर ध्यान दे रही है। जबकि केन्द्र सरकार कई मामलों मे उन्हे ग्रीन सिग्नल नही दे रही है। कुल मिलाकर जहां दोनो ही पार्टीयं युवा नेतृत्व की वकालत कर रही है, एसे में युवाओं के लिए दोनो ही पार्टीयों की अनदेखी आमजन व खासतौर पर युवा वर्ग से धोखेबाजी है।
क्या आपने कभी सोचा है कि शहर में तकरीबन 5 हजार से ज्यादा एसे घर है, जिनमें बूढ़े मां-बाप अकेले रह रहे है। एसा नही है कि उनके बेटे या बेटिया उन्हे छोड़ कर चले गए। दरअसल रोजगार की तलाश में उन्हे अपना शहर और घर दोनो ही छोड़ना पड़ा। अंचल में बामौर व मालनपुर जैसे औद्योगिक क्षेत्र खस्ताहाल में है। कोई भी बड़े औद्योगिक घराने यहां आने को तैयार नही है। अब एसे हालातों में आप क्षेत्र के हित में किस पार्टी को चुनेंगे।

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