हम सोचे संजीव कुमार के घर हम बच्चन पैदा हुए है, पर हम तो शशि कपूर निकले। बच्चन तो साला कोई और है। गैंग आफ वासैपुर-2 के यह कड़क डायलाग आज भी फिल्म देखने वालों के जेहन में है। इस ग्रे शेड फिल्म में अपने अभिनय का लोहा मनवाने वाले फैजल खान ( असल जिंदगी में नवाजुद्दीन सिद्दीकी) संजीव कुमार के फैन है। नवाज भाई का यूं तो मैं खुद भी बड़ा फैन हूं। ग्वालियर में इंडिया टुडे के उभरता चंबल कान्क्लेव में उनसे छोटी सी मुलाकात में उन्होने बताया कि ना तो शक्ल थी और ना ही किसी फिल्मी फैमिली का बैकग्राउंड था। एनएसडी (नेशनल स्कूल आफ ड्रामा) से पास होने के बाद बालिवुड में कोई पांच साल तक काम नही मिला। हालत यह हो गई बंबई में भूखा मरने की नौबत आ गई। खुद को अनलकि मानने लगे। जबकि आत्मविश्वास यह भी था कि बस, एक बार काम मिल जाएं तो उनको कोई रोक नही पाएगा। काम भी मिले तो कुछ सेकंड के रोल। इसके बाद नवाजु्द्दीन से फैजल भाई बनने में 12 साल लग गए। मैने उनसे पूछा कि जिया खान की शुरुआत सुपरस्टार के साथ होती है, इसके बाद वह अवसाद की शिकार होकर मौत को गले लगा लेती है। वही दूसरी ओर नवाजुद्दीन 12 साल संघर्ष करते है, और फिर सुपरस्टार बनते है। इन दोनो बालिवुड हस्तियों मे क्या अंतर था। नवाज कहते है कि आजकल काम के लिए यंगस्टर्स कनेक्शन बनाने में ज्यादा मेहनत करते है। जबकि असल मेहनत अपने काम को पालिश करने में करना चाहिए। कनेक्शन से काम मिल सकता है, जबकि मेहनत से नाम जरुर मिलेगा।
मैं कम बोलता हूं, पर कुछ लोग कहते हैं कि जब मैं बोलता हूं तो बहुत बोलता हूं.
मुझे लगता है कि मैं ज्यादा सोचता हूं मगर उनसे पूछ कर देखिये जिन्हे मैंने बिन सोचे समझे जाने क्या क्या कहा है!
मैं जैसा खुद को देखता हूं, शायद मैं वैसा नहीं हूं.......
कभी कभी थोड़ा सा चालाक और कभी बहुत भोला भी...
कभी थोड़ा क्रूर और कभी थोड़ा भावुक भी....
मैं एक बहुत आम इन्सान हूं जिसके कुछ सपने हैं...कुछ टूटे हैं और बहुत से पूरे भी हुए हैं...पर मैं भी एक आम आदमी की तरह् अपनी ज़िन्दगी से सन्तुष्ट नही हूं...
मुझे लगता है कि मैं नास्तिक भी हूं थोड़ा सा...थोड़ा सा विद्रोही...परम्परायें तोड़ना चाहता हूं ...और कभी कभी थोड़ा डरता भी हूं...
मुझे खुद से बातें करना पसंद है और दीवारों से भी...
बहुत से और लोगों की तरह मुझे भी लगता है कि मैं बहुत अकेला हूं...
मैं बहुत मजबूत हूं और बहुत कमजोर भी...
लोग कहते हैं लड़कों को नहीं रोना चाहिये...पर मैं रोता भी हूं...और मुझे इस पर गर्व है क्योंकि मैं कुछ ज्यादा महसूस करता हूं...
Tuesday, 18 June 2013
बच्चन तो साला कोई और है....
हम सोचे संजीव कुमार के घर हम बच्चन पैदा हुए है, पर हम तो शशि कपूर निकले। बच्चन तो साला कोई और है। गैंग आफ वासैपुर-2 के यह कड़क डायलाग आज भी फिल्म देखने वालों के जेहन में है। इस ग्रे शेड फिल्म में अपने अभिनय का लोहा मनवाने वाले फैजल खान ( असल जिंदगी में नवाजुद्दीन सिद्दीकी) संजीव कुमार के फैन है। नवाज भाई का यूं तो मैं खुद भी बड़ा फैन हूं। ग्वालियर में इंडिया टुडे के उभरता चंबल कान्क्लेव में उनसे छोटी सी मुलाकात में उन्होने बताया कि ना तो शक्ल थी और ना ही किसी फिल्मी फैमिली का बैकग्राउंड था। एनएसडी (नेशनल स्कूल आफ ड्रामा) से पास होने के बाद बालिवुड में कोई पांच साल तक काम नही मिला। हालत यह हो गई बंबई में भूखा मरने की नौबत आ गई। खुद को अनलकि मानने लगे। जबकि आत्मविश्वास यह भी था कि बस, एक बार काम मिल जाएं तो उनको कोई रोक नही पाएगा। काम भी मिले तो कुछ सेकंड के रोल। इसके बाद नवाजु्द्दीन से फैजल भाई बनने में 12 साल लग गए। मैने उनसे पूछा कि जिया खान की शुरुआत सुपरस्टार के साथ होती है, इसके बाद वह अवसाद की शिकार होकर मौत को गले लगा लेती है। वही दूसरी ओर नवाजुद्दीन 12 साल संघर्ष करते है, और फिर सुपरस्टार बनते है। इन दोनो बालिवुड हस्तियों मे क्या अंतर था। नवाज कहते है कि आजकल काम के लिए यंगस्टर्स कनेक्शन बनाने में ज्यादा मेहनत करते है। जबकि असल मेहनत अपने काम को पालिश करने में करना चाहिए। कनेक्शन से काम मिल सकता है, जबकि मेहनत से नाम जरुर मिलेगा।
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