मैं कम बोलता हूं, पर कुछ लोग कहते हैं कि जब मैं बोलता हूं तो बहुत बोलता हूं.
मुझे लगता है कि मैं ज्यादा सोचता हूं मगर उनसे पूछ कर देखिये जिन्हे मैंने बिन सोचे समझे जाने क्या क्या कहा है!
मैं जैसा खुद को देखता हूं, शायद मैं वैसा नहीं हूं.......
कभी कभी थोड़ा सा चालाक और कभी बहुत भोला भी...
कभी थोड़ा क्रूर और कभी थोड़ा भावुक भी....
मैं एक बहुत आम इन्सान हूं जिसके कुछ सपने हैं...कुछ टूटे हैं और बहुत से पूरे भी हुए हैं...पर मैं भी एक आम आदमी की तरह् अपनी ज़िन्दगी से सन्तुष्ट नही हूं...
मुझे लगता है कि मैं नास्तिक भी हूं थोड़ा सा...थोड़ा सा विद्रोही...परम्परायें तोड़ना चाहता हूं ...और कभी कभी थोड़ा डरता भी हूं...
मुझे खुद से बातें करना पसंद है और दीवारों से भी...
बहुत से और लोगों की तरह मुझे भी लगता है कि मैं बहुत अकेला हूं...
मैं बहुत मजबूत हूं और बहुत कमजोर भी...
लोग कहते हैं लड़कों को नहीं रोना चाहिये...पर मैं रोता भी हूं...और मुझे इस पर गर्व है क्योंकि मैं कुछ ज्यादा महसूस करता हूं...

Thursday 13 June 2013

फायर ब्रिगेड मंगवा दे तू अंगारों पर है अरमान

ऊपर लिखी इन पंक्तियों के मायने बहुत है . देश की मोजुद हालत भी यही बयां कर रही है. हर तरफ दामिनी की मौत पर अंगार भड़क भड़क जा रहे है? इसके के लिए जिम्मेदार कांग्रेस, देश की सरकार या फिर और कौन ? जिम्मेदार आप है, और हा अपनी गलती छुपाने के लिए जज की भूमिका में मत आइये. स्वीकार करे आप अब तक गलत थे, और इन हालातो के बाद आत्म मंथन जरुर करेंगे.
१६ दिसम्बर की घटना के बाद लिखने का काफी दिल था. इस घटना के आखिर कौन जिम्मेदार है इस सही मायने में तय नहीं कर पा रहा था. काफी सोचने के बाद लगा की हालत इस स्तर तक आने के लिए मैं और आप सबसे बड़े दोषी है. अब अनुमान लगाये की ही वारदात को अंजाम देने वाले लोग कहा से आये है. शीला दिक्षित के घर से, कांग्रेस कार्यालय से या पाकिस्तान से. घटना के बाद हम सजा देने अपने ही देश के पुलिस वालो को क्यों चुन रहे है. आखिर पुलिस वालो के भी परिवार और बेटिया है. इसके बाद घटना के बाद दिल्ली के जंतर मंतर और इंडिया गेट पर प्रदर्शन का क्या औचित्य है ? इस आन्दोलन की शुरुआत हमे अपने घरो से करना होगी . अब यहाँ बात शुरुआत से करूँगा, ऊपर लिखी पंक्ति फायर ब्रिगेड मंगवा दे तू.......... इसके विडियो को देख कर मायने समझे जा सकते है. कितने घरो में ये गाना सुबह टीवी ओन होते ही शुरू हो जाता है. पुरुषो के अंडरवियर के विगयापन में लड़की को अर्धनग्न दिखाया जाता है. फिर जलेबी बाई, और चिकनी चमेली और न जाने क्या क्या.....इसमें महिला को मानव जाती की बजै कोई विलासता और उपभोग की वास्तु की तरह पेश किया जाता है. अब रोज सुबह टीवी ओन होते ही जलेबी बाई और फायर ब्रिगेड के रूप में कोई लड़की अर्धनग्न स्क्रीन पर दिखेगी, तो मानसिकता दूषित होना जायज है. यदि विरोध करना है तो देश के सेंसर बोर्ड , आइटम गर्ल मल्लिका अरोरा, मल्लिका शेरावत और क्लौडिया के घर पर प्रदर्शन होने चाहिए. जो आज दिल्ली की घटना से व्यथित है उन्हें यह सन्देश जरी करना होगा की अब कही भी महिला वर्ग को उपभोग की वास्तु की तरह पेश न किया जाये. दामिनी की मौत इस देश में कम से कम नारी समाज को सही सम्मान देने में कामयाब रही तो यह उसकी शहादत समझी जाएगी. दरअसल लिखना बहुत है, पर दिमाग चल रही उथल पुथल को मैं सही शब्द नही दे पा रहा हु. इसलिए थोडा लिखा है, पर ज्यादा समझिएगा.
- आपका , अर्पण राउत, ग्वालियर 474002

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