दिल का रास्ता पेट से होकर गुजरता है..... कभी कभी गलत ट्रेन भी सही जगह पहुंचा देती है.. और केन आई कम विद यू इऩ भूटान ...। ये तीन डायलॉग हिन्दी फिल्म लंच बॉक्स की आत्मा है। मतलब यह कि फिल्म देखने के बाद इन डायलॉग की गहराई मालूम होती है। जब सिनेमा देखने वालों की भीड़ ग्रांड मस्ती जैसी व्दीअर्थी फिल्म को देखने के लिए उमड़ रही हो, इस बीच लंच बॉक्स देखने के लिए उतावलापन भी दर्शकों मे दिखा, जो जायज भी लगा। कहानी एक एसे बीमा कंपनी के कर्मचारी की है, जो अपनी पत्नी की मौत के बाद अकेला है। वही इला नाम की महिला अपने पति व बेटी के साथ 1 बीएचके के छोटे से फ्लैट में रहते हुए भी अकेली है। उसका पति काफी व्यस्त है, अपनी नौकरी के साथ और एक बाहरी के महिला के साथ भी। इस बीच दो अकेले लोगो के बीच कभी ना गलती करने वाले डब्बा वालों की गलती से प्यार पनपता है, फेसबुक और वॉट्स अप के दौर में दोनो के बीच महिनों हाथ से लिखी चिट्ठीयों का दौर चलता है। भावनाओं को बड़ी बारीकी से चुनचुन कर डायरेक्टर रीतेश बत्रा ने सीन में पिरोया है। ज्यादा लिखूंगा तो फिल्म का मजा किरकिरा हो जाएगा। हां, फिल्म मे देशपांडे आंटी जो कभी दिखी नही, और नवजुद्दीन सिद्दीकी का शेख का रोल काफी प्रभावशाली है। ये मेरे उन दोस्तो के लिए है, जो मेरी तरह कुछ अलग हटकर देखना पसंद करते है। थोड़ा लिखा है ज्यादा समझना....। आपका -अर्पण
मैं कम बोलता हूं, पर कुछ लोग कहते हैं कि जब मैं बोलता हूं तो बहुत बोलता हूं.
मुझे लगता है कि मैं ज्यादा सोचता हूं मगर उनसे पूछ कर देखिये जिन्हे मैंने बिन सोचे समझे जाने क्या क्या कहा है!
मैं जैसा खुद को देखता हूं, शायद मैं वैसा नहीं हूं.......
कभी कभी थोड़ा सा चालाक और कभी बहुत भोला भी...
कभी थोड़ा क्रूर और कभी थोड़ा भावुक भी....
मैं एक बहुत आम इन्सान हूं जिसके कुछ सपने हैं...कुछ टूटे हैं और बहुत से पूरे भी हुए हैं...पर मैं भी एक आम आदमी की तरह् अपनी ज़िन्दगी से सन्तुष्ट नही हूं...
मुझे लगता है कि मैं नास्तिक भी हूं थोड़ा सा...थोड़ा सा विद्रोही...परम्परायें तोड़ना चाहता हूं ...और कभी कभी थोड़ा डरता भी हूं...
मुझे खुद से बातें करना पसंद है और दीवारों से भी...
बहुत से और लोगों की तरह मुझे भी लगता है कि मैं बहुत अकेला हूं...
मैं बहुत मजबूत हूं और बहुत कमजोर भी...
लोग कहते हैं लड़कों को नहीं रोना चाहिये...पर मैं रोता भी हूं...और मुझे इस पर गर्व है क्योंकि मैं कुछ ज्यादा महसूस करता हूं...
Sunday, 22 September 2013
दिल का रास्ता पेट से होकर गुजरता है
दिल का रास्ता पेट से होकर गुजरता है..... कभी कभी गलत ट्रेन भी सही जगह पहुंचा देती है.. और केन आई कम विद यू इऩ भूटान ...। ये तीन डायलॉग हिन्दी फिल्म लंच बॉक्स की आत्मा है। मतलब यह कि फिल्म देखने के बाद इन डायलॉग की गहराई मालूम होती है। जब सिनेमा देखने वालों की भीड़ ग्रांड मस्ती जैसी व्दीअर्थी फिल्म को देखने के लिए उमड़ रही हो, इस बीच लंच बॉक्स देखने के लिए उतावलापन भी दर्शकों मे दिखा, जो जायज भी लगा। कहानी एक एसे बीमा कंपनी के कर्मचारी की है, जो अपनी पत्नी की मौत के बाद अकेला है। वही इला नाम की महिला अपने पति व बेटी के साथ 1 बीएचके के छोटे से फ्लैट में रहते हुए भी अकेली है। उसका पति काफी व्यस्त है, अपनी नौकरी के साथ और एक बाहरी के महिला के साथ भी। इस बीच दो अकेले लोगो के बीच कभी ना गलती करने वाले डब्बा वालों की गलती से प्यार पनपता है, फेसबुक और वॉट्स अप के दौर में दोनो के बीच महिनों हाथ से लिखी चिट्ठीयों का दौर चलता है। भावनाओं को बड़ी बारीकी से चुनचुन कर डायरेक्टर रीतेश बत्रा ने सीन में पिरोया है। ज्यादा लिखूंगा तो फिल्म का मजा किरकिरा हो जाएगा। हां, फिल्म मे देशपांडे आंटी जो कभी दिखी नही, और नवजुद्दीन सिद्दीकी का शेख का रोल काफी प्रभावशाली है। ये मेरे उन दोस्तो के लिए है, जो मेरी तरह कुछ अलग हटकर देखना पसंद करते है। थोड़ा लिखा है ज्यादा समझना....। आपका -अर्पण
Wednesday, 3 July 2013
घुटनामाल ग्वालियर पुलिस
ग्वालियर। बचपन में एक डाकू की कहानी सुनी थी। उसका नाम था, अंगुलीमाल । वह राहगीरों की जंगल से गुजरते वक्त अंगुली काट लेता था। इन उंगलियों की माला बनाकर वह गले में पहनता था। पुलिस भी इस डाकू से सबक लेकर बदमाशों से निपटने में लगी है। शहर और देहात में सिर उठाने वाले बदमाशों के ऐन घुटने पर गोली लग रही है। इस माह आंकड़ा सोमवार की रात पांच तक पहुंच गया। रात को मुरार थाने की पुलिस ने गणेश और बंटी नाम के दो अपराधियों के घुटने गोली मारकर सुराख कर दिए। मतलब, जिंदगी भर के लिए अब ये बदमाश पुलिस से भाग नही सकेंगे। अब इस पूरे एपिसोड में पुलिस की मुस्तैद कार्रवाई काबिल ए तारिफ है। हां, ये बात खल रही है कि पहले पुलिस सुस्त थी, या फिर अब पुलिस का निशाना दुरुस्त हो गया है। कुल मिलाकर नए पुलिस कप्तान की पुरानी टीम के घुटनामाल तेवर देख, बदमाश पुलिस से अपने घुटने छुपाए फिर रहे है। बदमाशों के सपने में आकर पुलिस शोले के गब्बर के अंदाज में घुटना मांगती दिखाई दे रही होगी। जैसा कि गब्बर ने फिल्म में ठाकुर को बांधकर उससे उसके हाथ मांगे थे। ये हाथ हमको दे ठाकुर......... ।
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Wednesday, 26 June 2013
थोड़ा लिखा है ज्यादा समझना
उत्तराखंड में कोहराम होने के बाद सोचता हूं कि देश में सरकारें भले ही ना हो, पर सेना का होना बहुत जरुरी है। नेता काम करने के बजाएं सिर्फ एक-दूसरे को नीचा दिखाने में जुटे है। जबकि सेना के जवान व अफसर चुपचाप अपना काम करने में जुटे है। जय जवान-जय किसान ....।
Tuesday, 18 June 2013
बच्चन तो साला कोई और है....
हम सोचे संजीव कुमार के घर हम बच्चन पैदा हुए है, पर हम तो शशि कपूर निकले। बच्चन तो साला कोई और है। गैंग आफ वासैपुर-2 के यह कड़क डायलाग आज भी फिल्म देखने वालों के जेहन में है। इस ग्रे शेड फिल्म में अपने अभिनय का लोहा मनवाने वाले फैजल खान ( असल जिंदगी में नवाजुद्दीन सिद्दीकी) संजीव कुमार के फैन है। नवाज भाई का यूं तो मैं खुद भी बड़ा फैन हूं। ग्वालियर में इंडिया टुडे के उभरता चंबल कान्क्लेव में उनसे छोटी सी मुलाकात में उन्होने बताया कि ना तो शक्ल थी और ना ही किसी फिल्मी फैमिली का बैकग्राउंड था। एनएसडी (नेशनल स्कूल आफ ड्रामा) से पास होने के बाद बालिवुड में कोई पांच साल तक काम नही मिला। हालत यह हो गई बंबई में भूखा मरने की नौबत आ गई। खुद को अनलकि मानने लगे। जबकि आत्मविश्वास यह भी था कि बस, एक बार काम मिल जाएं तो उनको कोई रोक नही पाएगा। काम भी मिले तो कुछ सेकंड के रोल। इसके बाद नवाजु्द्दीन से फैजल भाई बनने में 12 साल लग गए। मैने उनसे पूछा कि जिया खान की शुरुआत सुपरस्टार के साथ होती है, इसके बाद वह अवसाद की शिकार होकर मौत को गले लगा लेती है। वही दूसरी ओर नवाजुद्दीन 12 साल संघर्ष करते है, और फिर सुपरस्टार बनते है। इन दोनो बालिवुड हस्तियों मे क्या अंतर था। नवाज कहते है कि आजकल काम के लिए यंगस्टर्स कनेक्शन बनाने में ज्यादा मेहनत करते है। जबकि असल मेहनत अपने काम को पालिश करने में करना चाहिए। कनेक्शन से काम मिल सकता है, जबकि मेहनत से नाम जरुर मिलेगा।
Monday, 17 June 2013
रोजगार जहां जीरो, वहां झूठे विकास का दावा कर बन रहे हीरो
ग्वालियर। मेरी ये टिप्पणी ना तो भाजपा नेताओं पर है, और ना ही कांग्रेस नेताओं पर । सीधा आरोप है, मतादाताओं पर, वो भी मेरे अपने ग्वालियर चंबल के। साफ पहले इसलिए कर दिया कि मेरे इस पोस्ट को राजनीति के आरोप व प्रतयारोप का ठिकाना ना बना दें।
दरअसल कल ही देश के प्रतिष्ठित इंडिया टुडे समूह ने ग्वालियर में उभरता चंबल कॅान्क्लेव का आयोजन किया था। यहां चर्चा करने के लिए भारत सरकार के रुरल डवलपमेंट मिनिस्टर प्रदीप जैन आदित्य व प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान भी उपिस्थत थे। मैने कॅान्क्लेव में इनसे सवाल किया कि जिस अंचल के युवा पैदा होकर पढ़ने तक यही होते है। बाद में रोजगार की तलाश के लिए दिल्ली, नोएडा व पूना जैसे बड़े शहरों की ओर पलायन कर जाते है। एसे हालातों मे उभरते चंबल का दावा करना ठीक होगा। जहां युवा नही, रोजगार वहां विकास की बात करना बेइमानी है। इस पर भारत सरकार के मंत्री प्रदीप जी का कहना था कि विकास हो रहा है। केन्द्र सरकार पर राज्य सरकार कोई प्रस्ताव लाएगी, तब इस पर काम किया जाएगा। वही अगले सत्र में शिवराज सिंह कहते है कि उन्होने साढ़ें सात सालों मे कानून व्यवस्था ठीक की। अब रोजगार के अवसर बढ़ाने पर ध्यान दे रही है। जबकि केन्द्र सरकार कई मामलों मे उन्हे ग्रीन सिग्नल नही दे रही है। कुल मिलाकर जहां दोनो ही पार्टीयं युवा नेतृत्व की वकालत कर रही है, एसे में युवाओं के लिए दोनो ही पार्टीयों की अनदेखी आमजन व खासतौर पर युवा वर्ग से धोखेबाजी है।
क्या आपने कभी सोचा है कि शहर में तकरीबन 5 हजार से ज्यादा एसे घर है, जिनमें बूढ़े मां-बाप अकेले रह रहे है। एसा नही है कि उनके बेटे या बेटिया उन्हे छोड़ कर चले गए। दरअसल रोजगार की तलाश में उन्हे अपना शहर और घर दोनो ही छोड़ना पड़ा। अंचल में बामौर व मालनपुर जैसे औद्योगिक क्षेत्र खस्ताहाल में है। कोई भी बड़े औद्योगिक घराने यहां आने को तैयार नही है। अब एसे हालातों में आप क्षेत्र के हित में किस पार्टी को चुनेंगे।
Thursday, 13 June 2013
Sharab Chahiye, mahapaur niwas aaiye
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chakravyuh
chakravyuh = is desh ki total 25% capital, kewal 100 pariwaro ke pass hai. Jabki aadhi aabadi kewal 20 rupay roz ke liye kamar tod mehnat kar rahi hai. Salwa judum ki hakikat aur system par jordar chot hai. Taklif hai ki itna zabardast subject, bus ek 3 hrs. Ki movie bankar kahatam ho gaya. Ye krantikari movie hai, jo log subject wali movie pasand karte ho, meri ray hai, ise jarur dekhe..... lal salam
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Gwalior Carnival 2013
mere gwalior ki pehchan sangeet samrat tansen se hai,. unki yaad main tansen samaroh bhi hota hai. iske baad saal me ek baar mela bhi lagta hai. ise 100 se jyada ho gaye. ab ye gwalior ki branding ke liye gwalior carnival shuru kiya hai. is carnival ke brand ambesdor milind gunaji hai. iski opening karne haizal keech aati hai. chambal show me dakoo nachte hai. kya ye mere gwalior ki pehchan hai ? sawal to ye hai ki, kya gwalior ki zameen se koi aisa naam nahi paida huaa jo iska brand ambesedor ban pata ? ya iska openning geet sagar jaisa apne hi gwalior ka beta karta. itna hi nahi daku dekh kar kya bahar ke log mere gwl se prabhavit honge ? in sabke baad sabse bada sawal ise starheen aayojan me prashasan ke afsar din raat ek kar denge ? aakhir kis liye ? ye kaun log hai jo sanstha ki shakal me gwalior carnival kar ke iski pahchan badalne me lage hai. is aayojan ki funding bhi kaun si takate kar rahi hai. jinke aage prashasan aur rajneta sir jhuka ke aur haath bandh ke khade hai. ISKE JIMMEDAR AAP AUR HUM HAI, JO GWALIOR KA CHEER HARAN DEKH KAR BHI CHUP HAI.
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फायर ब्रिगेड मंगवा दे तू अंगारों पर है अरमान
ऊपर लिखी इन पंक्तियों के मायने बहुत है . देश की मोजुद हालत भी यही बयां कर रही है. हर तरफ दामिनी की मौत पर अंगार भड़क भड़क जा रहे है? इसके के लिए जिम्मेदार कांग्रेस, देश की सरकार या फिर और कौन ? जिम्मेदार आप है, और हा अपनी गलती छुपाने के लिए जज की भूमिका में मत आइये. स्वीकार करे आप अब तक गलत थे, और इन हालातो के बाद आत्म मंथन जरुर करेंगे.
१६ दिसम्बर की घटना के बाद लिखने का काफी दिल था. इस घटना के आखिर कौन जिम्मेदार है इस सही मायने में तय नहीं कर पा रहा था. काफी सोचने के बाद लगा की हालत इस स्तर तक आने के लिए मैं और आप सबसे बड़े दोषी है. अब अनुमान लगाये की ही वारदात को अंजाम देने वाले लोग कहा से आये है. शीला दिक्षित के घर से, कांग्रेस कार्यालय से या पाकिस्तान से. घटना के बाद हम सजा देने अपने ही देश के पुलिस वालो को क्यों चुन रहे है. आखिर पुलिस वालो के भी परिवार और बेटिया है. इसके बाद घटना के बाद दिल्ली के जंतर मंतर और इंडिया गेट पर प्रदर्शन का क्या औचित्य है ? इस आन्दोलन की शुरुआत हमे अपने घरो से करना होगी . अब यहाँ बात शुरुआत से करूँगा, ऊपर लिखी पंक्ति फायर ब्रिगेड मंगवा दे तू.......... इसके विडियो को देख कर मायने समझे जा सकते है. कितने घरो में ये गाना सुबह टीवी ओन होते ही शुरू हो जाता है. पुरुषो के अंडरवियर के विगयापन में लड़की को अर्धनग्न दिखाया जाता है. फिर जलेबी बाई, और चिकनी चमेली और न जाने क्या क्या.....इसमें महिला को मानव जाती की बजै कोई विलासता और उपभोग की वास्तु की तरह पेश किया जाता है. अब रोज सुबह टीवी ओन होते ही जलेबी बाई और फायर ब्रिगेड के रूप में कोई लड़की अर्धनग्न स्क्रीन पर दिखेगी, तो मानसिकता दूषित होना जायज है. यदि विरोध करना है तो देश के सेंसर बोर्ड , आइटम गर्ल मल्लिका अरोरा, मल्लिका शेरावत और क्लौडिया के घर पर प्रदर्शन होने चाहिए. जो आज दिल्ली की घटना से व्यथित है उन्हें यह सन्देश जरी करना होगा की अब कही भी महिला वर्ग को उपभोग की वास्तु की तरह पेश न किया जाये. दामिनी की मौत इस देश में कम से कम नारी समाज को सही सम्मान देने में कामयाब रही तो यह उसकी शहादत समझी जाएगी. दरअसल लिखना बहुत है, पर दिमाग चल रही उथल पुथल को मैं सही शब्द नही दे पा रहा हु. इसलिए थोडा लिखा है, पर ज्यादा समझिएगा.
- आपका , अर्पण राउत, ग्वालियर 474002
१६ दिसम्बर की घटना के बाद लिखने का काफी दिल था. इस घटना के आखिर कौन जिम्मेदार है इस सही मायने में तय नहीं कर पा रहा था. काफी सोचने के बाद लगा की हालत इस स्तर तक आने के लिए मैं और आप सबसे बड़े दोषी है. अब अनुमान लगाये की ही वारदात को अंजाम देने वाले लोग कहा से आये है. शीला दिक्षित के घर से, कांग्रेस कार्यालय से या पाकिस्तान से. घटना के बाद हम सजा देने अपने ही देश के पुलिस वालो को क्यों चुन रहे है. आखिर पुलिस वालो के भी परिवार और बेटिया है. इसके बाद घटना के बाद दिल्ली के जंतर मंतर और इंडिया गेट पर प्रदर्शन का क्या औचित्य है ? इस आन्दोलन की शुरुआत हमे अपने घरो से करना होगी . अब यहाँ बात शुरुआत से करूँगा, ऊपर लिखी पंक्ति फायर ब्रिगेड मंगवा दे तू.......... इसके विडियो को देख कर मायने समझे जा सकते है. कितने घरो में ये गाना सुबह टीवी ओन होते ही शुरू हो जाता है. पुरुषो के अंडरवियर के विगयापन में लड़की को अर्धनग्न दिखाया जाता है. फिर जलेबी बाई, और चिकनी चमेली और न जाने क्या क्या.....इसमें महिला को मानव जाती की बजै कोई विलासता और उपभोग की वास्तु की तरह पेश किया जाता है. अब रोज सुबह टीवी ओन होते ही जलेबी बाई और फायर ब्रिगेड के रूप में कोई लड़की अर्धनग्न स्क्रीन पर दिखेगी, तो मानसिकता दूषित होना जायज है. यदि विरोध करना है तो देश के सेंसर बोर्ड , आइटम गर्ल मल्लिका अरोरा, मल्लिका शेरावत और क्लौडिया के घर पर प्रदर्शन होने चाहिए. जो आज दिल्ली की घटना से व्यथित है उन्हें यह सन्देश जरी करना होगा की अब कही भी महिला वर्ग को उपभोग की वास्तु की तरह पेश न किया जाये. दामिनी की मौत इस देश में कम से कम नारी समाज को सही सम्मान देने में कामयाब रही तो यह उसकी शहादत समझी जाएगी. दरअसल लिखना बहुत है, पर दिमाग चल रही उथल पुथल को मैं सही शब्द नही दे पा रहा हु. इसलिए थोडा लिखा है, पर ज्यादा समझिएगा.
- आपका , अर्पण राउत, ग्वालियर 474002
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कल ग्वलियर मे राजनैतिक महौल गरमा गया। आरएसएस के नेता मोहन भागवत का पुतला फूंकने िनिकले मुट्टठी भर यूथ कांग्रेस के नेताओं को खासा विरोध पुलिस का झेलना पड़ा। पुलिस ने उनसे पुतला तो छीन ही िलिया। साथ ही इस दौरान महिला नेत्री सुश्री रश्मि पर भी पुलिस ने हाथ उठा िदिया। इतना ही नही, अचानक प्रकट हुए बजरंगियों ने भी कांग्रेसियों को खदेड़ने में कोई कसर नही छोड़ी। इस पूरे एपिसोड में कांग्रेस की गुटबाजी अपने चरम पर दिखी। इस आयोजन में युंका की प्रदेश उपाध्यक्ष का साथ देने के िलिए अकेले लोकसभा क्षेत्र अध्यक्ष केदार ही संघषर् करते नजर आए। जबकि पूरी पाटीर् ने उनसे िकिनारा कर लिया। कांग्रेस में वैसे भी गुटबाजी की परंपरा पुरानी रही है।
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हालात पैदा करेंगे विभीषण
ग्वालियर के व्यापार मेले में तीन दिनों तक लगे भगवा मेले में 10 साल से ताजा कमल इस जेठ की गर्मी में मुरझाने का संकेत दे गया। पार्टी पर इस बार भारी विभिषण ही बैठेंगे। (यहां नाम न लेना ठीक रहेगा) दरअसल पार्टी में कभी सिरमौर रहे करंटबाज नेता अब हाशिए पर है। उन्हे भारी गमजा इस बात का है कि वह हमेशा से सादगी से रहे, और उस पर से अपने पट्ठों को भी जमकर तवज्जों दी। इसके बाद भी पार्टी ने एन चुनाव के पहले उन्हे हाथ पकड़ कर प्रदेश में हस्तक्षेप करने से रोक दिया। भगवा मेले में उन्हे दिन और रात कार्यकर्ताओं के बीच देखा गया। जबकि मुंह में तंबाकू का घिस्सा रखकर हमेशा सिर हिलाकर जवाब देने वाले नेता कहां से और कहां जाते थे, ये किसी को पता नही चला। दूसरी और राजनीति के लिए अपना जीवन होम करने वाली साध्वी को पूर्व मुख्यमंत्री के नाते बुलाया तक नही गया। उस पर राजनाथ कह गए कि आपसी व्देश में पूरे घर को आग ना लगा दें। अब अपन से पूछों तो बताएं हकीककत कि अब आग लगी तो पानी डालने वाला भी नही मिलेगा। आखिर पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी तीन दिन शौच धोने के लिए पानी का इंतजाम किसी नेता ने नही किया था।
भस्मासुर के बाप का खुलासा -
एनआईए की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि चार कांग्रेसी नेता नक्सलियों के संपर्क में थे। अब जरा गौर फरमाइएगा कि इन नेताओं की मौत से फायदा किसे था। हाल ही में होने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस वोट बैंक को द्रवित कर अपने पास खींचना चाहती है या कांग्रेस के ही पिछले पंकि्त के नेता आगे आने की जुगत में है। खैर, काबिल ए गौर ये भी होगा कि आखिर इन नक्सलाइट को पोस कौन ताकते रही है। इन नेताओं को यह सोचना भी जरुरी होगा कि उनके तैयार नक्सलवाद और आतंकवाद जैसे भस्मासुर अब कहीं आगे इन पर ही हाथ ना रख दें। भगवान शिव तो अपनी क्षमताओं से भस्मासुर से छुटकारा पा लिए थे। अब इऩका क्या होगा कालिया.....
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बॉलिवुड अदाकारा जिया खान ने की आत्महत्या
बॉलिवुड में कुछ समय पहले सनसनी फैलाने वाली अदाकारा जिया खान ने बीती रात फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। महज 25 साल की इस ग्लैमरस अदाकारा काफी लंबे समय से मुफलिसी के दौर से गुजर रही थी। आपको ध्यान दिला दूं, यह जिया वही है जो अपने पिता की उम्र से बड़े अमिताभ बच्चन के साथ निशब्द फिल्म में अ चुकी है। उसने अमिताभ बच्चन के साथ विवादास्पद रोमांटिक युवती का रोल किया था। खैर, जिंदगी में बहुत जल्दी सब कुछ पा लेने की हवस नई उम्र के लोगो में हावी होती जा रही है।
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फोकिटयों ने कराया बंद कैफे कॉफी डे
शहर की अर्थव्यवस्था का अंदाजा उसमें खुले इंटरनेशनल ब्रांड के आउट-लेट की संख्या से होता है। अपने शहर ग्वालियर में ब्रांड तो बहुत आए, जबकि समय के साथ वह बंद हो गए, या फिर अपनी आखिरी सांसे ले रहे है। अब बात कर लिजिए शहर के सबसे पॉश इलाके सिटी सेंटर की। यहां कैफे कॉफी डे की ब्रांच कई समय पहले खुली। यहां एक ओर सामने पार्किंग ने होने से परेशानी थी ही। इससे बड़ी परेशानी यहां सुबह से जमने वाले छुटभैये नेताओं और गली के गुंडों की टोली का बैठना था। यहां एसी की ठंडी हवा में आराम फऱमाने के लिए फोकटियों की मंडलियां बकायदा राइफलों से लैस होकर बैठ जाती थी। माहौल देखकर दावा किया जा सकता है कि एसा माहौल पूरे देश के किसी और रेस्टॉरेन्ट का नही हो सकता। इन्हे देखकर परिवारों के साथ आए लोग हिचक कर चले जाते थे। वही स्टाफ भी कुछ बोले तो उन्हे अभद्रता का शिकार होना पड़ता था। स्टाफ बताता है कि एक समय था जब विश्वविद्यालय थाने के एक धाकड़ टीआई ने यहां जमने वाले फोकटियों को बाल पकड़ पकड़ कर घसीटा था। तब माहौल काफी बेहतर था, जबकि अब पुलिस भी यहां झांकने की तकलीफ नही करती। अब, कंपनी ने तय किया है कि सिटी सेंटर छोड़कर कही भी सेटअप जमाया जाएगा। गौरतलब है कि यहां पहले डॉमिनोजं भी बंद हो चुका है। आप खुद तय करें जिस शहर में व्यापार नही होगा, उस शहर के विकास की कल्पना की जा सकती है ? - जनहित में जारी ।
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आगे आपकी बारी
आगे आपकी बारी - जिस परिवार में बुजुर्गों की इज्जत नही होती। उस घर में कभी यश और शांति का वास नही हो सकता। आडवाणी जी को दूध में से मक्खी की तरह निकाल कर भाजपा की सेकंड लाइन भले ही खुश होगी। जबकि उन्हे इस बात से भी आश्वस्त हो जाना चाहिए कि अब भविष्य में अगली बारी उनकी ही होगी। हिन्दुत्व की बात करने वाली भाजपा व संघ खुद ही हिन्दु परिवार की रीत भूल गया। जहां बुजुर्ग को हमेशा परिवार के मुखिया की तवज्जों दी जाती है। शेम... शेम.. शेम .... । थोड़ा लिखा है, ज्यादा समझना। आपका- अर्पण, ग्वालियर.
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जूता फैंक लेदर, दिल छीछालेदर
ग्वालियर। विधानसभा चुनाव में शर्तिया कांग्रेस को भाजपा से क़ड़ी टक्कर अपनी ही पार्टी की भीतरघात झेलना पड़ेगी। पर्यवेक्षक के तौर पर आए नवप्रभात के सामने कांग्रेस पार्टी में विधानसभा के दावेदारों की लम्बी लाइन लग गई। जो वर्तमान में विधायक है उनकी बात तो ठीक, जबकि जो कभी पार्षद का चुनाव नही जीते वो भी दावेदारी करने से पीछे नही रहे। केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में प्रदेश में कांग्रेस का परचम फहराने का सपना बेमानी से लगता है। यह इसलिए कि उनके घर यानी ग्वालियर के पार्टी कार्यालय में जिला सदर डॊ. दर्शन सिंह अपने खांटी विरोधी मुन्नालाल से उलझते नजर आएं। यहां बता दे वे दोनो ही ग्वालियर पूर्व से टिकट के दावेदार है। जिला स्तर पर पार्टी की पहली पंकित् के नेता इस कदर भिड़ेंगे तो चुनाव में ना जाने कितने नेता, कितनी कब्रे अपने ही पार्टी के दावेदार के लिए खोद देंगे। यही वजह रही कि पिछली बार कांग्रेस को पूर्व से मुन्नालाल व दक्षिण से रश्मि पंवार को हार का सामना करना पड़ा था। आखिर जिला स्तर पर कांग्रेस के भीतर कई सारी कांग्रेस जिनमें दर्शन कांग्रेस, मुन्ना कांग्रेस, प्रदुम्न कांग्रेस, भगवानसिंह कांग्रेस, रश्मि कांग्रेस कब एक होंगी। खैर, एक ना एक दिन कांग्रेस जिला इकाई में आपस में फिंकते लेदर के जूतों से महल में बैठे महाराजा सिंधिया का दिल जरुर छीछालेदर होगा....।
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